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लेखनी प्रतियोगिता -22-Sep-2023

#दिनांक:-22/9/2023
#शीर्षक:- क्या खूब दिन थे

बड़ा मजा आता था बचपन में,
खलिहान हमारा घर हो जाता,
सुबह से लेकर रात तक,
मस्ती ही मस्ती सुझता!

धान की सटकाई,
पोरे की बँधाई,
आटा सारे बँध जाने पर,
पुआल का गाझा बनता!

शाम पहर धान के गट्ठर पर,
गोबर का पिण्ड रखा जाता,
सांझ के दीपक से,
अन्नपूर्णा को पूजा जाता!

खलिहानों में दोपहर में,
मजदूरनियों की चौपाल थी सजती,
खा पीकर, गप्पे मार और आराम कर
फिर काम में जुटती !

क्या खूब दिन थे बचपन के,
यादें खींच ले जाती फिर वहीं
पचपन से,
सब यादें आती हैं बारी-बारी
अब सब सपना बनकर रह गये,
नहीं रहे हमारे|

रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है |

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई 

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6 Comments

Milind salve

25-Sep-2023 05:16 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

24-Sep-2023 09:02 AM

👏👌

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Varsha_Upadhyay

22-Sep-2023 09:16 PM

Nice 👌

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